सोयाबीन की फसल में होने वाले कीटो एवं रोगो से होने वाले नुकसान से कैसे बचा जा सकता है और फसल के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता

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देवास । अनियमित मौसम की वजह से सभी फसलों में कीट एवं रोगो की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। किसानो की इन समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई ग्रामोफ़ोन ऐप पर इन सभी समस्याओं से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध है जो इस ऐप को किसानो के मध्य लोकप्रिय बना रही है, और किसान इसे आधुनिक किसान मित्र का नाम दे रहे है। किसान इस ऐप को गूगल-प्ले स्टोर से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते है एवं किसानो की सुविधा के लिए एक टोल फ्री नंबर 18003157566 भी उपलब्ध है जिस पर किसान भाई किसी भी समय अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं।

अभी खरीफ का सीजन चल रहा है एवं ज्यादातर किसान भाई सोयाबीन की फसल का उत्पादन करते है। अनियमित मौसम के चलते कभी अधिक बारिश ताक कभी सूखे की समस्या होती है जिसकी वजह से सोयाबीन की फसल पर कई कीटों एवं रोगो की मर पड़ती है और उत्पादन ना के बराबर रह जाता है। वर्तमान के मौसम के हिसाब से सोयाबीन की फसल में होने वाली समस्याओं, उनके समाधान एवं उत्पादन को बढ़ाने के उपायों की जानकारी ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों द्वारा प्रदान की गई। जिसके अंतर्गत उन्हें सोयबीन की फसल में लगने वाले कीट नियंत्रण के समाधान दिए गए व साथ ही साथ फसल में सामान्यतः होने वाले रोगों को नियंत्रित करने की युक्तियां भी प्रदान की गई। किसानों को सोयाबीन की फसल के लिए भूमि की तैयारी, उन्नत किस्में, बीज दर, बुवाई का उपयुक्त समय, बुवाई विधि, बीज उपचार, खाद तथा उर्वरक इत्यादि की जानकारी दी गई।
ग्रामोफ़ोन द्वारा दी गई जानकारियों में प्रमुख रुप से किसानो को सोयाबीन की फसल में लगने वाले कीटों के प्रकार, उनके प्रकोप कैसे आता है एवं उसका समय व उससे सुरक्षा के लिए रखी जाने वाली सावधानियों से अवगत कराया गया। उन्हें बताया गया कि कीटों के कारण 30-40 फीसदी तक उत्पादन प्रभावित हो सकता है इसलिए कीट प्रबंधन आवश्क है। विभिन्न कीटों के प्रकोप का समय अंकुरण से 30 दिन से लेकर फसल की 50-80 दिन की अवस्था तक रहता है तथा उनकी सक्रियता जुलाई से लेकर अक्टूबर तक होती है। भूमि के कीटों की रोकथाम के लिए फोरेट 10 फीसदी ळ 10 किलो प्रति हेक्टर के हिसाब से बुवाई के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए जिससे शुरुआती चरण में ही कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। शेष रोकथाम हेतु विभिनन कीटनाशकों का छिड़काव बदल-बदल कर करना होता है।
साथ ही रोग नियंत्रण के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई कि फफूंद जनक रोगों के आक्रमण से बीज सडन रोकने हेतु कार्बेक्सीन के साथ थायरम का उपयोग करें। गेरुआ रोग की रोकथाम के लिए फसल पर टेबुकोनाजोल 10 फीसदी सल्फर 65 फीसदी ॅळ 800 ग्राम प्रति हेक्टर छिड़काव करें। गेरुआ रोग प्रतिरोधक किस्में लगाने का युक्ति बताई गई एवं साथ ही फसल चक्र अपनाने का सुझाव भी दिया। विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस सफेद मक्खी द्वारा फैलता है। इसके नियंत्रण हेतु रोग रहित स्वस्थ बीज तथा रोग फैलाने वाले कीड़ों के नियत्रंण के लिए कीटनाशक एसीटामीप्रीड 20 फीसदी एस.पी. 200 ग्राम/हेक्टर या इमिडाक्लोप्रीड 17.8 फीसदी एस.एल 200 मिली. प्रति हेक्टर या थायमेथोक्साम 25 किलो100 ग्राम/हेक्टर के हिसाब से छिडकाव करने की सलाह दी गई। इसके साथ ही खरपतवार नियंत्रण, कटाई, गहाई व भंडारण संबंधित आवश्यक बातें भी बताई गई।

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