मानवीय संवेदनाओं को जीवित कर, कुरीति उन्मूलन में दिया समाज को संदेश! देवास से पत्रकार नितेश नागर की रिपोर्ट

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मानवीय संवेदनाओं को जीवित कर, कुरीति उन्मूलन में
दिया समाज को संदेश!
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समाज में हमें उसी व्यक्तित्व पर नाज करना चाहिए, जो समाज की भावनात्मक मानवीय संवेदनाओं का ध्यान रखते हुए, कुछ श्रेष्ठतर निर्णय ले,
जिसके कारण समाज सोचने के लिए मजबूर हो ? यह तो तय है कि, कुरीति उन्मूलन में ‘महासभाओं ‘ के माध्यम से कोई विशेष परिवर्तन की संभावनाएं नही रही है !
समाज स्वयं अपने स्वविवेक से दकियानूसी विचारधारा से उपर उठ कर, वर्तमान परिदृश्य में खड़े रहने के लिए, निर्णायक भूमिका निभा रहा है !समाज को बदलने के लिए पूर्व से चली आ रही परंपराएं,जो
कष्टप्रद रही, जिससे समाजिक प्रताड़ना व विधवा ‘होने का दंश
महिलाएं झेलति आ रही हैं, उन्हें हटाना आज की अनिवार्य आवश्यकता है ,लेकिन समाज में परंपरावादी लोग भरे पढ़े हैं, जिनकी वजह से सामाजिक बंधनों से मुक्त होना मुश्किल होता है,लेकिन आज के परिवेश ने, इसे निरर्थक मान कर, बेटियों के प्रति भावनात्मक सहयोग करने की पहल ने सार्थक संदेश देने के प्रयास की शुरुआत हो चुकी है!
अब समाज उस विचारधारा का सम्मान कर आगे बढ़ रहा है, जो समाज के लिएअनुपयोगी हो , उसे न स्वीकारें और जो सकारात्मक है, जिससे बड़ी राहत मिलती हो,,जो समाज के लिए भविष्य श्रेष्ठ होकर संवर सकता हो, समाज के लिए प्रेरणार्थक हो ,जो दूसरों की खूशीयों का ख्याल रखते हो, इन्हीं प्रचलित मान्यताओं के पक्षधर होकर, नई विवेकशील विचारों को शक्ति देना चाहता है, जिससे समाजिक मान्यता प्राप्त विकृतियों को दूर किया जा सके!
अभी 2मार्च 2020 को
सामाजिक कूरीति उन्मूलन का सराहनीय प्रयास ‘खाचरौद ‘ (उज्जैन) के धाकड़ मोहनलालजी पोपंडिया (मालव)
द्वारा अपने युवा पुत्र के आकस्मिक निधन होने के पश्चात
पुत्र की भावनाओं के अनुरूप, बहु को अपनी बेटी मानकर
पुनर्विवाह समाज की भव्य उपस्थिति में सोलह श्रृंगार कर, उसे लग्न मंडप में, उसी प्रकार सम्मान दिया गया, जिस प्रकार एक दुल्हन को दिया जाता है!
समाज की उपस्थिति ने उन दकियानूसी विचारों को नकारा, जिसमें महिलाओं को ‘विधवा ‘
होने का श्राप और अपशकुन माना जाता था, जो जीवन भर
समाज की उपेक्षा और ताने सुनकर ,अपनी खुशीयों का गला
घोट कर समाज के रीति -रिवाज के अनुसार मरते दम तक बंधनों में जीना पड़ता था!
संभवत: समाज में यह
पहला क्रांतिकारी उदाहरण है, जो
समाज की भावनाओं के विपरीत
होकर, मोहनलालजी पोपंडिया के साहस और समाज की उपस्थिति, इस बात की गवाह देना चाहती है कि, समाज को ऐसी मूल्यहीन मान्यताओं से मुक्त होना चाहिए, जिसमें घुटन ज्यादा हो और जीवन के मूल्य का आंकलन कम हो ? खाचरौद जैसे छोटे शहर में भी विकसित भाव का होना बड़ी बात है!
ऐसे साहसिक लोगों की भावनाओं को नजर अंदाज नही किया जा सकता है, जो प्रतिकुल परिस्थितियों में भी, मानवीय संवेदना को जीवित कर,
नई उर्जा के साथ परंपराएं रचकर
इतिहास रचते हैं ,जो कुरीति उन्मूलन की दिशा में समाज के लिए प्रेरणार्थक है!
स्वविवेक से लिया गया निर्णय बिरले समाज सेवियों की श्रेणी में आता है!
साहसिक परिवार को हृदय से आभार यह जानकारी बालमुकुंद नागर (धाकड़)
72 मातृ आश्रय लिम्बोदी इन्दौर के द्वारा दी गई


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