नागरिकता के साक्ष्य नहीं जुटा पाने वाले 19 लाख लोग सूची से बाहर
आखिरकार बहुप्रतीक्षित एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की अंतिम सूची सामने आ ही गई, जिसमें नागरिकता के साक्ष्य नहीं जुटा पाने वाले 19 लाख लोग सूची से बाहर हैं। स्थानीय लोग वास्तविक घुसपैठियों की संख्या कहीं ज्यादा बताते रहे हैं। दरअसल, चिंताएं उन लोगों को लेकर भी हैं जो अपनी नागरिकता के पर्याप्त साक्ष्य परिस्थिति के चलते पेश न कर पाये। यानी भारत का नागरिक होने के बावजूद तकनीकी कारणों से उन्हें नागरिकता के अधिकारों से वंचित होना पड़ेगा। इस सूची से जुड़ी तमाम तरह की चिंताएं सामने आ रही हैं। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होने वाला कानून-व्यवस्था का संकट भी अहम मुद्दा है जो अन्य राज्यों में भी जटिल समस्या पैदा कर सकता है। विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए केंद्र सरकार की तरफ से गंभीर पहल की अावश्यकता महसूस की जा रही है। मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। विसंगतियों का समय रहते समाधान देश के हित में है। हालांकि, विपक्ष समेत सत्तारूढ़ भाजपा भी इस रिपोर्ट से संतुष्ट नजर नहीं आ रही है। फिर भी मुख्यमंत्री सूची में शामिल होने से वंचित लोगों से संयम व धैर्य का परिचय देने को कह रहे हैं। नि:संदेह देश में शांति व सद्भाव कायम रखना केंद्र व राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए। तमाम तरह की चुनौतियों के बीच हिंसक टकराव हमें विकास के मार्ग से भटका सकता है।
एनआरसी सूची से बाहर रहे लोगों को 120 दिन के भीतर फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का अधिकार होगा। अपील खारिज होने पर उन्हें कोर्ट जाने का मौका मिलेगा। तो क्या अपील अस्वीकार किये जाने पर सूची से बाहर रह गये लोगों को देश से बाहर किया जा सकेगा? इसमें केंद्र व राज्य सरकारों की किस हद तक भूमिका होगी? पहली सूची में 41 लाख लोगों के बाहर रहने पर ऐसे ही तमाम सवाल उठे थे। असम की सामाजिक-संस्कृति के लिये चुनौती बने विदेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिये छह साल तक आंदोलन हुआ था। आंदोलनकारियों से हुए असम समझौते के बाद शीर्ष अदालत की दखल के बाद असम को घुसपैठियों से मुक्त करने के लिये एनआरसी की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया था। सवाल उठता है कि क्या हालिया जारी सूची अपने मकसद में कामयाब रही है? विसंगति यह भी है कि बहुत से लोगों को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के बारे में जानकारी नहीं है। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जो वकील व कोर्ट की फीस देने में सक्षम नहीं हैं। क्या उन्हें सरकारी परामर्श उपलब्ध कराया जायेगा? आशंका है कि एनआरसी से बाहर रह गये लोग अन्य राज्यों में भूमिगत होने की कोशिश कर सकते हैं। अन्य राज्यों को भी चाकचौबंद व्यवस्था करनी होगी। यह अपने आप में नयी किस्म की चुनौती है, जिसे सजगता व संवेदनशीलता से निपटने की जरूरत है। इसके अलावा देश की सीमाओं पर सतर्क व्यवस्था जरूरी है। घुसपैठियों को संदेश जाना चाहिए कि भारत अब धर्मशाला नहीं रहा। सवाल यह भी कि अंतिम रूप से घुसपैठिया घोषित लोगों को बांग्लादेश स्वीकार करेगा?