(पंचकल्याणक महोत्सव का तीसरा दिन)
गज पर सवार होकर निकले वीर प्रभु
भ. आदिनाथ हुए पांडू शीला पर विराजमान किए कलशाभिषेक
गंधर्वपुरी पंचदिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव में तीसरे दिन आदिकुमार का जन्म बडे ही धुमधाम के साथ जन्म महोत्सव मनाया
जन्म अतिशय पर विशाल सौभायात्रा निकली जन्म के उपरान्त बैंड बाजे ढोल धमाके घोड़े धर्म पताका हाथ में लिए सुसज्जित रथ पर विराजमान अष्ट कुमारिया,
,इन्द्र रानीयो के साथ आदिकुमार का एरावत हाथी पर सौधर्म इंद्र द्वारा अयोध्या नगरी की प्रदक्षिणा कराई गई
नगरी भ्रमण के पश्चात श्री जी को इंद्र इंद्रानियो द्वारा भव्य पांडू शिला पर विराजमान किया गया, भगवान की बुआ बनने के सौभाग्य प्राप्त करने वालो को भगवान के नैत्रो में काजल लगाकर श्रृंगार करने का सौभाग्य पाया पांडू शिला पर विराजमान आदिनाथ प्रभु के इंद्रो द्वारा शुद्ध जल से अभिषेक किया गया जन्म कल्याणक की बधाइयां दी गई
इस अवसर पर उपाध्याय श्री विपणन सागर जी महाराज में बताया कि-
जन्मों-जन्मों की साधना का फल जन्म कल्याण पूर्व में जिसने स्वकुटुंब द्वारा अनेक भावना से स्वार्थ को त्यागकर परमार्थ परम परमात्मा की भावना से जानने वाला स्वयं की साधना की उस परम उदार भावना का फल तीर्थंकर बनना है तिर्थकर पद किसी व्यक्ति के लिए आरक्षित नहीं है जिसके अंदर लोक कल्याण की भावना है प्राणी मात्र का हित एवं उदार दृष्टि है निर्मल मन वाला मानव भगवान बन सकता है हम अपने सभी दोसो पर विजय प्राप्त कर लेते हैं दिशानिर्देश पुरानी ही परमात्मा का अधिकारी होता है यहां मंच से दिखाए गए जन्म कल्याणक के भव्य प्राणियों को प्रेरणा देता है जो भी इंद्रजायी बनने का पात्र बनेगा वही विश्व विजय तिलोक जाई बन सकेगा भगवान किसी जाति विशेष के एकाधिकार नहीं होते हैं वह तो सर्वशक्तिमान सरोजनी सरोज ज्ञानी सब के प्रति दयालु है किसी का भला यह बुरा नहीं करते भगवान के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर हम अपने मानव जीवन का भला कर सकते हैं